उंटगिरी दुर्ग

राजस्थान करौली का एक प्रमुख दुर्ग जो अपनी अभेद्य दुर्ग संरचना और सरकारी उपेक्षाओ का जीवंत उदाहरण है ।





करौली से में 55 किमी दूर कल्याणपुरा गांव से आगे चंबल के बीहड़ों में एक डेढ़ हजार फीट की सुरंगनुमा पहाड़ी पर 4 किमी की बृहद प्राचीरों से घिरा एक दुर्ग है । जिसे उंतगिरी दुर्ग की नाम से पहचाना जाता है । यह वन प्रदेश का पहाड़ी दुर्ग है, जिसके निर्माण सम्बन्धी जानकारियों के हिसाब इस दुर्ग का निर्माण लोधी राजपूतों ने किया था ।
इसके अलावा उन्होंने यहां बांध और कई कच्चे तालाबों का भी निर्माण करवाया था ।
इस किले के बारे में एक लोकोक्ति बहुत प्रचलित है । "" भोंदू राज खंडियार का उंतगीरी दियो बनाए ""
मतलब लोधियों ने यह किला बेगार के जरिए खंडार के लोगो से बनवाया था । जिसे बाद में यदुवंशी राजा अर्जुन देव ने जीत लिया था। जिसे सन 1480 में करौली राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित किया गया ।

यह किला सुरक्षा की दृष्टि से करौली राज्य का सबसे महत्वपूर्ण दुर्ग था जोकि आपातकाल में राज्य के धन सम्पदा और राज परिवार को सुरक्षित रखने में सहायक होता था ।

उंटगीरी दुर्ग का पुरातत्व दर्ष्टि से सर्वे करने पर यह मालूम पड़ता है की किले की ज्यादातर निर्माण सुरक्षा की दृष्टि से किया गया था , जिसमे स्थापत्य कला और सुंदरता पर कम ध्यान दिया था ।

महाराजा चंद्रसेन जी के s के शासनकाल में बादशाह अकबर भी यहां आए थे । जिनके आग्रह पर महाराजा चंद्रसेन जी ने अपने पोत्र गोपाल दास जी को आगरा दुर्ग के शिलान्यास के लिए भेजा था ।

कालांतर में इस दुर्ग पर सुरक्षा हेतु 300 सिपाहियों के साथ 1 किलेदार रहता था यह की किलेदारी मुख्या रूप से हाड़ोती के रूपपुरा परिवार के पास रहती थी । जिसके आखिरी किलेदार ठाकुर गजराज पाल जी थे ।
जिन्हें बाद में रूपपुरा के पास खेड़ला और निमोदा की जागीर दी गई थी ।

वर्तमान किले के नीचे झरने पोखर और सतियों की छतरी के भग्नावेश मिलते है ।

उंटगिरी दुर्ग पक्के परकोटे से युक्त दो दरवाजे एक खिड़की से युक्त 4 किमी के विशाल भूखंड में फैला हुआ है । इमली पौर इसका मुख्य दरवाजा है ।
अंदर की बसावट पर कुदरत का कहर कम पर कुछ पेशेवर समाज कंटक लोगो की हैवानियत का ग्रास जरूर बना हुआ है ।

मुख्य द्वार के अंदर 7 मंदिर , दो टांके और राज प्रसाद अव्यवस्थित हालात में है । साथ ही एक मंदिर के बगल में सुरंग भी है ।
जिसके मार्ग के बारे में किसी को ज्ञात नहीं है ।

  यहां पर स्थित ठाकुर बाबा का चबूतरा लोगो के लिए विशेष भक्ति का स्थान है ।

सघन वन होने के कारण यहां दस्यु और वन्यजीव का आतंक रहता है । जिसके कारण लोग यहां जाने से डरते है ।
आजादी के बाद भारतीय सरकार ने इसे अपने अन्तर्गत कर लिया था । जिसके बाद प्रशासन ओर सरकार ने इस प्राचीन धरोहर को कभी मुड कर नहीं देखा ।
जिसकी वजह से यह प्राचीन धरोहर अपने अंतिम समय में चल रही है ।

:- Team Karaulians